.

शासकीय दूधाधारी बजरंग महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रायपुर छत्तीसगढ़ (स्वायत्तशासी संस्था)

Govt. Dudhadhari Bajrang Girls Postgraduate College,Raipur, Chhattisgarh (An Autonomous Institution)
Est. 1958 ,NAAC Accredited & Awarded status of a " College with Potential for Excellence " by the U.G.C

FOUNDERS

  • Home -
  •  
  • FOUNDERS

ःः श्रीदूधाधारी मठ-एक परिचय:ः

पावन पवित्र भूमि छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक, धार्मिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से हृदय स्थल राजधानी रायपुरके मठपारा में स्थित है ‘‘ श्रीदूधाधारी मठ ‘‘ ‘‘, जिसकी स्थापना परमसिद्ध महात्मा राजेश्री महन्त बलभद्र दास जी के कर कमलों से सम्वत् 1610 में की गयी | सम्पूर्ण जीवन केवल दूध का आहार ग्रहण करने के कारण इन्हीं के नाम से इस स्थान का नाम श्रीदूधाधारी मठ के नाम से विख्यात हुआ । यह छत्तीसगढ़ ही नहीं अपितु सम्पूर्ण भारतवर्ष में अत्यन्त ही प्रसिद्ध पीठ है। ऐसा माना जाता है कि एक समय नागपुर के राजा श्री भोंसले जी आखेट हेतु अपने सहयोगियों सहित जंगल में आये, उन्हें भूख-प्यास लगने पर क्षुधा निवारण के लिए इधर-उधर भटकने लगे कुछ देर पश्चात् उन्हें जंगल में एक कुटिया दिखाई दी। राजा जब अपने सहयोगियों सहित उस कुटिया के पास पहुँचे तो वहाँ का दृश्य देखकर आश्चर्यचकित हो गये। एक महात्मा ध्यानमग्न होकर बैठे हैं तथा उनके एक तरफ गाय और दूसरी तरफ शेर बैठा हुआ था । हिंसक प्राणी के सामने भी गाय को निर्भीक बैठे हुए देखकर वे बहुत प्रभावित हुए। ध्यान टूटने पर महात्मा जी से दर्शनलाभ एवं चर्चा के उपरांत सन्तजी के द्वारा सेवा सत्कार किया गया। चर्चा के दौरान राजा ने सन्तान प्राप्ति के लिये याचना की,और वहीं विराजमान् संकटमोचन हनुमानजी से प्रार्थना की व अपने राज्य को चले गये। एक वर्ष के अन्दर ही राजा को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई जिससे प्रसन्न होकर वे सपरिवार पुनः दर्शनार्थ श्रीस्वामी जी के पास आये। श्री संकटमोचन हनुमानजी के दर्शन-पूजन करने के पश्चात् इस स्थान पर उन्होंने एक भव्य मन्दिर निर्माण का सपना साकार किया |उसमें भगवान श्रीस्वामी बालाजी एवं श्री लक्ष्मणजी को प्रतिष्ठित किया। अपने स्वामी का अहर्निश दर्शन प्राप्त करने के लिए श्री संकटमोचन हनुमानजी स्वमेव दक्षिणाभिमुख हो गये। भारतवर्ष में एकमात्र श्रीदूधाधारी मठ ही है, जहाँ के महन्तजी को राजेश्री महन्तजी की उपाधि प्रदान की गई है। कुछ वर्षों पश्चात् राजेश्री महन्त बलभद्र दास जी अपने शिष्य श्रीस्वामी सीताराम दास जी को सेवा का दायित्व प्रदान कर भगवद्स्मरण करते हुए अंतर्ध्यान हो गये। इस मठ का संचालन शिष्य परम्परा से चलता है, जो निम्नानुसार है

1. राजेश्री महन्त वलभद्र दास जी (श्रीदूधाधारी जी) महाराज
2. राजेश्री महन्त सीताराम दास जी महाराज
3. राजेश्री महन्त अर्जुन दास जी महाराज
4. राजेश्री महन्त रामचरण दास जी महाराज
5. राजेश्री महन्त सरयू दास जी महाराज
6. राजेश्री महन्त लक्ष्णम दास जी महाराज
7. राजेश्री महन्त बजरंग दास जी महाराज
8. राजेश्री महन्त वैष्णव दास जी महाराज
9. राजेश्री डाॅ. महन्त रामसुन्दर दास जी महाराज

राजेश्री महन्त बजरंग दास जी महाराज:-

श्रीदूधाधारी मठ रायपुर के सप्तम आचार्य राजेश्री महन्त बजरंग दास जी महाराज हुए। आपका जन्म उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के चरखारी के अन्तर्गत चितहरि नामक गांव में हुआ। बाल्यकाल से ही धर्म-कर्म एवं भगवद्भक्ति से ओत-प्रोत भारत भ्रमण करते हुए आपका आगमन मध्य प्रान्त के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल रायपुर स्थित श्रीदूधाधारी मठ में हुआ। यहाॅ के तत्कालीन आचार्य राजेश्री महन्त लक्ष्मण दास जी महाराज से दीक्षा प्राप्त करके मठ मन्दिर के सेवा में समर्पित रहे।

राजेश्री महन्त वैष्णव दास जी महाराज:-

राजेश्री महन्त वैष्णव दास जी महाराज श्रीदूधाधारी मठ रायपुर के आठवें राजेश्री महन्त के पद पर आसीन हुए। आप राजेश्री महन्त बजरंग दास जी के कृपापात्र शिष्य थे। महाराज जी का जन्म बिहार प्रान्त के छपरा जिले के अन्तर्गत पचरूखी ग्राम के सामान्य कृषक परिवार में सन् 1900 ई. को हुआ । माताजी का नाम मनटोरा देवी एवं पिता का नाम मातवर सिंह था। बचपन में महन्त जी का नाम वासुदेव सिंह था। बाल्यकाल से ही भगवद्भक्ति एवं साधु संगति में मन आसक्त हो गया। मणिराम छावनी अयोध्या के सन्तश्री स्वामी देवनंदन दास जी के संपर्क में आकर उनके साथ श्रीदूधाधारी मठ में आकर गुरू कृपा को प्राप्त कर इस सेवा का दायित्व प्राप्त किया।

नवम् आचार्य राजेश्री डाॅ. महन्त रामसुन्दर दास जी महाराज:-

नारायण समारब्धं श्रीरामानन्दाचार्य मध्यमाम्।
अस्मदाचार्य पर्यन्ता, वन्दे गुरू परम्पराम्।।

श्रीदूधाधारी मठ में प्रारम्भ से ही गुरू-शिष्य परम्परा का निर्वाह होता आ रहा है। वर्तमान में इस सिद्ध पीठ के नवम् आचार्य राजेश्री डॉ. महन्त रामसुन्दर दास जी हैं। आप राजेश्री महन्त वैष्णव दास जी महाराज के शिष्य हैं। श्रीदूधाधारी मठ, श्रीशिवरीनारायण मठ एवं इससे संबंधित स्थानों का संचालन पूर्व परम्परानुसार विधिवत् आपके द्वारा किया जा रहा है। मठ मन्दिरों के संरक्षण, सन्तसेवा, गौमाता की सेवा के लिये गौशालाओं का संवर्धन, देववाणी संस्कृत भाषा के उन्नयन एवं सनातन धर्म तथा भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में आप लगे हुए हैं। संस्कृत भाषा के प्रति बाल्यकाल से ही रूचि रही है, जिसके कारण संस्कृत भाषा में स्नातक, संस्कृत से तीन विषयों में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूर्ण करने के पश्चात् संस्कृत में वाल्मीकि रामायण पर पी.एच.डी. की उपाधि पण्डित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर से प्राप्त करने के उपरांत संस्कृत रामायण में डी. लिट् के उपाधि हेतु शोधरत् हैं।

विभिन्न क्षेत्रों में मठ का योगदान:-

• रायपुर नगरवासियों को शुद्ध पेयजल उपलबध कराने हेतु मठ के पास लगे हुए रावण भाठा में 27 एकड़ भूमि जल शुद्धिकरण संयंत्र स्थापित करने के लिए दान दी गई ।
• श्रीदूधाधारी मठ में सत्संग भवन का निर्माण करवाया गया ।
• संस्कृत शिक्षा के प्रचार-प्रसार हेतु 24.04.1936 को संस्कृत विद्यालय की सन् 1939 में स्थापना की गई |
• ग्राम पिपरौद जिला-रायपुर में ,विद्या मन्दिर स्थापना |
• अभनपुर में उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की स्थापना।
• 2 अक्टूबर 1955 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की जयन्ती के पावन अवसर पर श्रीदूधाधारी वैष्णव संस्कृत महाविद्यालय रायपुर की स्थापना भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी के कर कमलों से किया गया एवं इसके संचालन हेतु 101 एकड़ कृषि भूमि दान दी गई ।
• प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकम्प, सुनामी, बाढ़ग्रस्त, सुखाग्रस्त पर समय-समय पर इस मठ के द्वारा सहयोग करने की परम्परा रही है।


महिला महाविद्यालय की स्थापना:-

समाज में नारी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिये सन् 1958 में श्रीदूधाधारी बजरंग महिला महाविद्यालय की स्थापना कालीबाड़ी रायपुर में की गई । इस महाविद्यालय को आर्थिक दृष्टि से मजबूती प्रदान करने के लिए तीन लाख एक सौ एक रूपये तथा तीन सौ एक एकड़ कृषि योग्य भूमि ग्राम पेण्ड्री (भाटापारा) में दान दी गई ।